जंगल में टपकती छप्पर के नीचे जीवन काट रहे हैं आदिवासी बुजुर्ग दंपत्ति
सो गया सिस्टम, इंसानियत जागी- राष्ट्रीय हिन्दू सेना ने थामा पीड़ितों का हाथ

बैतूल। आदिवासी बहुल जिले में सरकारी दावों की पोल खुलती हुई दिखाई दे रही है। यहां धाधु उइके और उनकी पत्नी सुशीला जैसे नेत्रहीन दंपत्ति वर्षों से सरकारी योजनाओं से वंचित होकर जंगल में लकड़ी बेचकर जीवन काटने को मजबूर हैं। कागज़ पर इनको पेंशन, राशन और आवास मिलना चाहिए—लेकिन हकीकत में इन्हें न अनाज मिलता है, न पेंशन, न कोई सहारा।
नेत्रहीन आदिवासी दंपत्ति भुखमरी में जीने मजबूर — सरकारी वादे कागज़ों में दफन
सराड पंचायत क्षेत्र के जंगलों में एक जर्जर झोपड़ी में जीवन गुजारते इस बुजुर्ग दंपत्ति की तकलीफ़ न ज़िला प्रशासन ने देखी, न पंचायत ने, और न ही विभागीय अधिकारी जागे। राशन कार्ड, आधार कार्ड और समग्र आईडी होने के बावजूद भी उनके हिस्से की रोटी सरकारी फाइलों में दबकर रह गई।
मानवता की मिसाल बनी राष्ट्रीय हिन्दू सेना
जब सरकारी तंत्र ने आंखें फेर लीं, तब राष्ट्रीय हिन्दू सेना आगे आई और परिवार तक पहुंचकर सहायता की। जिला अध्यक्ष अनुज राठौर, प्रदेश अध्यक्ष दीपक मालवीय समेत पदाधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर इस दंपत्ति की गंभीर स्थिति देखी और तुरंत मदद का हाथ बढ़ाया।
संगठन ने ऐलान किया है कि वे इस मामले में राष्ट्रीय जनजाति आयोग और बैतूल कलेक्टर से शिकायत करेंगे, ताकि योजनाओं का लाभ रोकने वालों पर कार्रवाई हो और दंपत्ति को उनका बुनियादी हक मिल सके।
7 किलोमीटर पैदल चलकर लकड़ी बेचते हैं
पेंशन बंद, अनाज बंद और पेट भरने का एकमात्र ज़रिया—7 किलोमीटर पैदल चलकर कंधे पर लकड़ी का बोझ उठाकर बेचना। क्या यही है “विकास” का दावा करने वाला सिस्टम ? यह दृश्य सरकार की विफलता पर करारा तमाचा है।

