जानिए क्या है पूरा मामला ?
इंदौर। इंदौर हाईकोर्ट ने (Indore High Court) मध्य प्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Government) पर 40 लाख की कॉस्ट लगाई है। पुलिस (Police) के बनाए गए फर्जी केस (Fake Case) के कारण तमिलनाडु (Tamil Nadu) के ड्राइवर (Driver) और कंडक्टर (Conductor) को 1 साल 8 महीना जेल (Jail) में रहना पड़ा। जिसके बाद इंदौर हाईकोर्ट ने ड्राइवर और कंडक्टर को 20-20 लाख रुपये देने के लिए सरकार पर जुर्माना लगाया है।
दरअसल, पूरा मामला बड़वानी जिले (Barwani) के नागलवाड़ी (Nagalwadi) का है। जहां 2 नवंबर 2019 को पुलिस ने तमिलनाडु से आ रहे ट्रक (Truck) को रोककर उसकी तलाशी ली थी। ट्रक में 1600 बॉक्स अंग्रेजी शराब (English Wine) के थे। जिसके पेपर क्लीनर और ड्राइवर ने पुलिस को चेक कराएं। पुलिस को शक था कि जो पेपर क्लीनर और ड्राइवर ने बताए हैं वह फर्जी हैं। जिसके आधार पर नागलवाड़ी पुलिस ने 420 और 468 के तहत एफआईआर (FIR) दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी थी।
एफआईआर दर्ज होने के बाद ड्राइवर रमेश पुलमर और क्लीनर (Cleaner) सकूल हामिद को 1 साल 8 महीने जेल में रहना पड़ा। जिसके बाद हाई कोर्ट एडवोकेट ऋषि तिवारी ने FIR निरस्त करने के लिए इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। पूरे मामले में इंदौर हाई कोर्ट ने केस को फर्जी मानकर सरकार पर 40 लाख रुपये की कॉस्ट लगाया है। हाई कोर्ट जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने 2 महीने के अंदर ड्राइवर और क्लीनर को पैसा देने के आदेश भी जारी किए हैं।
2 नवंबर 2019 को दोनों को भेजा था जेल
मध्य प्रदेश के नांगलवाड़ी में सब इंस्पेक्टर मजहर खान ने चेकिंग के दौरान केरल (Kerala) से आ रहे ट्रक को रोककर दस्तावेज मांगे थे। दस्तावेज पर शक होने पर सब इंस्पेक्टर (Sub Inspector) ने ट्रक को जब्त (Truck Seized) करवा दिया था। जिसके बाद पुलिस ने जांच पड़ताल के बाद ड्राइवर और क्लीनर के खिलाफ फर्जी दस्तावेज के मामले में एफआईआर दर्ज कर क्लीनर ड्राइवर को गिरफ्तार (Arrest) कर जेल भेज दिया था। 1 साल 8 महीने के बाद 12 जुलाई 2021 को ड्राइवर और क्लीनर को जमानत मिली थी।
चंडीगढ़ प्रशासन ने माना पेपर सहित है उनमें कोई छेड़छाड़ नहीं हुई थी
पूरा मामला हाई कोर्ट में जाने के बाद अधिवक्ता ऋषि तिवारी ने चंडीगढ़ के आबकारी विभाग (Excise Department of Chandigarh) से दस्तावेज के सिलसिले में पूरी जानकारी ली थी। जिसमें चंडीगढ़ के आबकारी विभाग ने दस्तावेज की तफ्तीश की और स्पष्ट किया कि दस्तावेज बिल्कुल सही है। ट्रक के अंदर जो दस्तावेज थे, उनमे स्पष्ट लिखा हुआ था कि ट्रक केरल पहुंचने के बाद ही ओपन किया जाएगा। रास्ते में इसे नहीं खोला जाए। चंडीगढ़ प्रशासन ने जवाब में दिया कि उन्होंने जो पेपर दिए थे और ड्राइवर ने पुलिस को जो पेपर दिखाए वह बिल्कुल सही और ओरिजिनल दस्तावेज थे।
पुलिस ने फर्जी केस दर्ज कर क्लीनर ड्राइवर को जेल भेज दिया था। हाईकोर्ट ने दस्तावेज परीक्षण के बाद पाया कि पुलिस ने अपनी सनक के चलते फर्जी केस बनाया था। बेमतलब दोनों ही लोगों को 1 साल 8 महीने जेल में रहना पड़ा। इस वजह से सरकार पर भारी कॉस्ट लगाई जाती है। जो ड्राइवर और क्लीनर को मिलेगी। केस बनाने वाले पुलिस अफसरों ने भी ट्रायल में माना कि उन्होंने शक के आधार पर ट्रक को रोककर केस बना दिया था।
इंदौर हाई कोर्ट ने गिनाई पुलिस की गलतियां
दस्तावेज परीक्षण के दौरान इंदौर हाईकोर्ट ने माना कि दस्तावेज के साथ ट्रक लेकर जा रहे ड्राइवरों क्लीनर को पुलिस ने जबरन रोका और सनक के चलते धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने का केस बना दिया। पुलिस की नियत पूरी तरीके से गलत थी। ट्रक को खुलवाना भी अनुचित था। याचिकाकर्ता बेवजह 1 साल 8 महीने जेल में रहा और उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।