ग्राम खंडेरा में आज से मां छोले वाली मैया के दरबार में मेला हुआ शुरु
*दैनिक प्राईम संदेश जिला ब्यूरो चीफ राजू बैरागी जिला *रायसेन*
सांचेत ग्राम खंडेरा में प्रति वर्ष लगने बाला मैला आज से शुरू हुआ जो की 15 दिसंबर तक चलेगा ये प्राचीन मेला मेले की शुरुआत यही से होती है इसके बाद रायसेन में 15दिसंबर से मेला लगेगा और इसके बाद सन 2025 में जनवरी माह मे 14 जनवरी से विदिशा में मेला लगेगा मां छोले बाली मैया का दरबार बहुत प्राचीन है यहां 200 साल पहले हुए थे देवी दर्शन,अब लगता है मेला मंदिर की देखभाल और माता की सेवा कर रहे पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि लगभग दो सौ साल पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी। माता रानी के विभिन्न रूपों में विभिन्न परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार पूजन की जाती है। रायसेन जिले में सागर मार्ग पर मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर स्थित ग्राम खंडेरा में छौले वाली माता का मंदिर स्थित है। हाईवे से लगभग दो सौ मीटर की दूरी बने इस विशाल मंदिर में विराजी मां छौले वाली की पीठ की पूजन होती है। मंदिर की देखभाल कर रहे पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि लगभग दो सौ साल पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी। तब से वे उनके परिवार की चौथी पीढ़ी के रूप में मंदिर की सेवा कर रहे हैं पीली मिट्टी से बनी हैं प्रतिमाएं मंदिर में एक नहीं बल्कि पांच प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो पीली मिट्टी से बनी हैं। संभवत: ऐसा किसी प्रचीन मंदिर में नहीं होगा। हर जगह संगमरमर काला पत्थर या धातु से बनी प्रतिमाएं पाई जाती हैं। लेकन खंडेरा में विराजी मां छौले वाली की प्रतिमाएं दो सौ साल पहले पीली मिट्टी से बनाई गईं जो आज भी उसी स्वरूप में विराजित हैं। साल में दो बार होली और दीपावली की दूज पर गोबर से प्रतिमाओं का शुद्धिकरण किया जाता है। और हर पंद्रह दिनों में अमावस्या और पूर्णिमा को माता जी का कलेवर किया जाता है
माता ने बचाया था महामारी से गांव के भीम सिंह बघेल वताते है की हमें हमारे बूढ़े सयाने वताते थे कि लगभग दो सौ साल पहले क्षेत्र में महामारी फैली थी। तब यहां छिंगा महाराज निवास करते थे। उनके कहने पर लोगों ने पीली मिट्टी से माता की प्रतिमा बनाकर अनुष्ठान किया। जिससे क्षेत्र से महामारी का प्रकोप खत्म हो गया। तब से ही ये प्रतिमाएं यहां विराजित हैं जहां हर साल अगहन माह में अमावश से पूर्णिमा पर मेला लगता है।
इसलिए कहते हैं छौले वाली दो सौ साल पहले मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर एक बड़े छौला(खकरा पलाश) के पेड़ के नीचे स्थापित कर पूजन की गई थी। किस माता की स्थापना की यह तो किसी को पता नहीं लेकिन कालांतर में उनका नाम छौले वाली माता पड़ गया यहां पर प्रति वर्ष साल में तीन बार मेला लगता है छेत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि और अगहन माह में मेला लगता है और हजारों की संख्या में लोग मां के दर्शन करते है और मन मुराद पूरी होती है.