हरदा
समझदारी से मेरी दोस्ती है अब
नादानियों से मेरी जंग हो गई।।
ख्वाबों से बातचीत नहीं मेरी
अब मनमौजी मेरी बंद हो गई।।
जिम्मेदार होने का एहसास है फकत
ख्वाहिशें भी मेरी खत्म हो गई।।।
दुनियां में अपनों की कमी कहां
खुद से बातें ही मरहम हो गई।।।
रिश्ते सब नाम काम के है
प्यार की लहर इनमें मंद हो गई।।।
वक्त कहां की ठहर जाए ज़रा
खुशियों की वजह भी चंद हो गई।।
दुनियां की भाग दौड़ में
ना जाने कब मैं खुद गुम हो गई।।
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कविता सरोदे( हरदा )