window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'G-VQJRB3319M'); आज मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी/ज्योतिष अचार्य पंडित अरुण शास्त्री - MPCG News

आज मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी/ज्योतिष अचार्य पंडित अरुण शास्त्री

आज मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी/ज्योतिष अचार्य पंडित अरुण शास्त्री
*दैनिक प्राईम संदेश जिला ब्यूरो चीफ राजू बैरागी जिला *रायसेन*

सांचेत मंगलवार को मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी ज्योतिष अचार्य पंडित अरुण शास्त्री ने बताया महत्व पूजाविधि और पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार,उत्पन्ना एकादशी का संबंध भगवान विष्ण की महाशक्ति मां एकादशी के जन्म से है। विष्णु पुराण और पद्म पुराण के अनुसार इस दिन व्रत रखने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। : उत्पन्ना एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। पंचांग के अनुसार अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 नवंबर सोमवार की रात 01: 02 मिनट से शुरू होगी जो अगले दिन यानी 26 नवंबर मंगलवार की रात 03:47 मिनट तक रहेगी चूंकि 26 नवंबर को एकादशी तिथि सूर्योदय के समय रहेगी इसलिए ये व्रत इसी दिन किया जाएगा।

उत्पन्ना एकादशी का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी का संबंध भगवान विष्णु की महाशक्ति मां एकादशी के जन्म से है। विष्णु पुराण और पद्म पुराण के अनुसार इस दिन व्रत रखने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत को सभी प्रकार के पापों और दोषों का नाश करने वाला माना गया है। उत्पन्ना एकादशी व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है और यह जीवन में सुख शांति और समृद्धि लाता है। नारद पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके द्वादशी को गंध आदि उपचारों से भगवन श्री कृष्ण की पूजा करें। तत्पश्चात श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करके स्वयं भी अपने इष्टजनों के साथ एकाग्र होकर भोजन करें। इस प्रकार जो भक्ति भाव से ‘उत्पन्ना’ का व्रत करता है,वह अनंतकाल में श्रेष्ठ विमान पर बैठकर भगवान विष्णु के लोक में चला जाता है।

उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी का व्रत दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू हो जाता है। दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें और मन को शुद्ध रखें। एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर भगवान विष्णु को पीले वस्त्र चंदन तुलसी दल अक्षत पीले फूल और फल अर्पित करें।

भगवान को पंचामृत अर्पित करें और धूप-दीप जलाकर विष्णु सहस्त्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। पूजा के दौरान एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें। दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखते हुए भगवान विष्णु का स्मरण करें और रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें। यह विधि भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन के पापों से मुक्ति दिलाने में सहायक मानी जाती है।

उत्पन्ना एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यराज मुर ने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने मुरासुर से युद्ध किया लेकिन वह अत्यंत बलशाली था। भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए हिमालय की एक गुफा में गए। जब मुरासुर ने गुफा में हमला किया तब भगवान विष्णु की शक्ति से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई। उस कन्या ने मुरासुर का वध किया और भगवान विष्णु ने उसे “एकादशी” नाम दिया। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी इस तिथि को व्रत करेगा उसके सभी पाप नष्ट होंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से एकादशी का व्रत किया जाने लगा। यह व्रत भक्तों को आध्यात्मिक शांति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ मार्ग माना जाता है।

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