कलेक्टर साहब शिकायत मिलने पर भी कार्यवाही से परहेज क्यों ?
सरकारी योजनाओं को लगातार पलीता लगा रहे परियोजना प्रभारी और पर्यवेक्षक फिर भी जिम्मेदार मौन ?
बैतूल/सारनी। महिला एवं बाल विकास विभाग प्रदेश सरकार जहां एक और नौनिहाल और गर्भवती महिलाओं को लेकर सचेत है और उनके हित में विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं लागू कर भरपूर लाभ पहुंचाने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर बैतूल जिले के सारनी क्षेत्र में जिला कलेक्टर, एसडीएम, जिला कार्यक्रम अधिकारी एवं प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही सुर्खियों में बनी सारनी में ही रहकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से पर्यवेक्षक फिर पर्यवेक्षक से प्रभारी परियोजना अधिकारी बनी संगीता धुर्वे और शोभापुर, पाथाखेड़ा पर्यवेक्षक रश्मि अकोदिया सहित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका मनमानी कर विभाग को चूना लगाने और उनकी योजनाओं को पलीता लगाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। जिसका अंदाजा 12 बजते ही आंगनबाड़ी केन्द्रों पर हर रोज लटक रहे तालों व केन्द्र में बच्चों कि अनुपस्थित से लगाया जा सकता है। क्षेत्र के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति इनदिनों बदतर दिख रही है। मनमर्जी से इसका खुलना बंद होना आम बात हो गई है। इसलिए सारनी के अधिकांश केंद्र रामभरोसे चल रहें है। यहां पिछले कई दिनों से आंगनबाड़ी केंद्रों पर मिलने वाली सुविधाएं बच्चों को नहीं मिल रही है। ऐसे में नौनिहाल और गर्भवती महिलाओं को सरकार की योजनाओं का कैसे लाभ मिल सकता है। इस तरह तो आंगनबाड़ी परियोजना प्रभारी अधिकारी और पर्यवेक्षक से लेकर वर्कर व हेल्पर अपना पेट भरती नजर आ रही हैं, क्योंकि उन्हें किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के निरीक्षण का डर नहीं है।
गौरतलब है कि सारनी परियोजना में कुल 78 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं। जिसमें सारनी, पाथाखेड़ा, शोभापुर सेक्टर के 30 आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे हैं, जो समय पर नहीं खुल रहे हैं। स्थिति यह है कि केंद्रों के खुलने का समय सुबह 9 से दोपहर 4 बजे तक का है। लेकिन केंद्र पर पदस्थ कार्यकर्ता और सहायिका खुलने और बंद होने के समय के बीच कभी भी एक से दो घंटे के बीच केंद्र पर अपनी ड्यूटी करके चली जाती हैं। ऐसी स्थिति में कई बार तो बच्चे और अभिभावक केंद्र पर ताला लगा हुआ देखकर वापस लौट जाते हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र की आंगनबाड़ी केंद्रों पर संबंधित विभाग का कोई अधिकारी निरीक्षण करने के लिए नहीं आता है। इस कारण आंगनबाड़ी केंद्रों पर पदस्थ कर्मचारियों के हौसले बुलंद हैं। वहीं इनके द्वारा बच्चों को खाने के लिए पोषण आहार नहीं दिया जा रहा है।
आंगनबाड़ी केंद्रों से सामान नदारद
स्थानीय लोगों की मानें तो आंगनबाड़ी केंद्र महज औपचारिकता के लिए खुलते हैं। इसमें भी बच्चों की संख्या बहुत कम होती है। इसके अलावा इन केंद्रों पर शासन की ओर से जो सामान दिया गया है। उनको परियोजना प्रभारी अधिकारी और पर्यवेक्षक के संरक्षण में कार्यकर्ता और सहायिका ने अपने घर पर रखे हुए हैं। जिसका उपयोग बच्चों की जगह उनके परिजन कर रहे हैं। वहीं शासन द्वारा यहां के नौनिहालों के शारीरिक और मानसिक विकास कि दिशा में और नौनिहालों को उचित पोषक आहार के साथ अच्छी प्रारंभिक शिक्षा मिल सके इसके लिए क्षेत्र में आंगनबाड़ी केंद्र खोले थे। लेकिन केंद्र पर कार्यरत कार्यकर्ता और सहायिका के साथ प्रभारी परियोजना अधिकारी और पर्यवेक्षक की अनदेखी के कारण आंगनबाड़ी केंद्र समय पर नहीं खुल रहे हैं। स्थिति यह है कि केंद्र के गेट पर ताले लटकते रहते हैं। जिसके कारण बच्चों के अभिभावकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। ऐसा भी नहीं हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र में बरती जा रही लापरवाही की खबर जिला कलेक्टर सहित विभागीय अफसरों को होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बच्चों को नहीं मिल पा रहा पोषण आहार
स्थानीय लोगों ने जानकारी देते हुए बताया कि इलाके में संचालित कई आंगनबाड़ी केंद्र कभी-कभार ही खुलते हैं। इस कारण से बच्चों को शासन की ओर से मिलने वाला पोषण आहार भी नहीं मिल पा रहा है। वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका द्वारा बाजार में बेच दिया जाता है। इसके अलावा जो पोषण आहार एक्सपायरी हो जाता है। उसको केंद्र के कर्मचारी कचरे और मवेशियों को फेंक देते हैं। सबसे अहम बात यह है कि यहां पर संबंधित लापरवाह पर्यवेक्षक प्रभारी अधिकारी संगीता और शोभापुर-पाथाखेड़ा कि पर्यवेक्षक जांच करने के लिए नहीं आती हैं। इस कारण से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के हौंसले बुलंद हैं।
इनका कहना है
अगर सारनी परियोजना के अंतर्गत तीनों सेक्टर में आंगनबाड़ी केंद्र समय पर नहीं खुल रहें है तो जांच कर संबंधित पर कार्रवाई की जाएगी।
प्रपंज आर, एसडीएम शाहपुर