window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'G-VQJRB3319M'); पृथ्वीराज चौहान मत बनिए सरकार- सुरभि भावसार - MPCG News

पृथ्वीराज चौहान मत बनिए सरकार- सुरभि भावसार

पीएम ने कहा था—“इस बार अंजाम कल्पना से परे होगा” लोगों को उम्मीद थी कि इस बार सिर्फ़ आतंकी नहीं, उन्हें पालने-पोसने वाला पाकिस्तान भी भुगतेगा

दिल्ली। हमने आप पर भरोसा किया था सरकार। सोचा था, इस बार हमारे जवानों की शहादत और आम लोगों का खून बेकार नहीं जाएगा। सोचा था, नई व्यवस्था अब सिर्फ निंदा नहीं, कुछ ऐसा करेगी जो पाकिस्तान को उसके पनाहगार आतंकियों के साथ सबक सिखा देगा। लेकिन इस बार भी उम्मीद टूटी है… इस बार भी वही शांति प्रस्ताव, वही राजनयिक बातचीत और वही युद्धविराम।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया था। एक बार फिर पाकिस्तान की सरजमीं से आतंक पनपा और हमारे मासूमों की जान ले गया। जवाब में सेना ने 7-8 मई की रात ऑपरेशन ‘सिंदूर’ चलाकर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया लेकिन… फिर वही हुआ जो हमेशा होता है। पाकिस्तान ने बौखलाहट में हमला करने की कोशिश की, सीमा पर तनाव चरम पर पहुंच गया और दिल्ली में बैठकों का सिलसिला चलने लगा। प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की मुलाकातें हुईं। देश सांसें रोक कर देख रहा था—शायद इस बार कुछ ऐतिहासिक होगा, शायद इस बार जो खून बहा है, उसका माकूल जवाब मिलेगा लेकिन हुआ क्या? युद्धविराम… फिर से युद्धविराम।

आपने ही कहा था न—“इस बार अंजाम कल्पना से परे होगा”। लोगों को उम्मीद थी कि इस बार सिर्फ़ आतंकी नहीं, उन्हें पालने-पोसने वाला पाकिस्तान भी भुगतेगा लेकिन अफ़सोस… क्या यही अंजाम था? क्या दो दिन में ही हमारी कल्पनाएं युद्धविराम में सिमट गईं? क्या ऑपरेशन सिंदूर ही काफी था उन हैवानों के लिए जिन्होंने कई मांगों के सिंदूर मिटाकर आपको खुली चुनौती दी थी।

आप आतंकियों के अड्डों पर निशाना साधते रहे और वो हमारे घरों पर गोलियां बरसाते रहे। आपने अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर शांति की पहल की, लेकिन उसी युद्धविराम के चंद घंटे बाद पाकिस्तान ने फिर से गोलीबारी शुरू कर दी। यही है उनकी शांति? यही है आपकी कूटनीति? यदि आतंक के खिलाफ जंग में भी आपको वैश्विक समर्थन का इंतजार है, तो फिर उस नए भारत की परिभाषा बदल दीजिए। मत भूलिए सरकार, ये वही पाकिस्तान है जिसने कारगिल में पीठ पीछे हमला किया, पठानकोट में एयरबेस पर हमला करवाया, उरी और पुलवामा में हमारे जवानों को शहीद किया और अब फिर से आम नागरिकों को निशाना बनाया।

ऐसे पाकिस्तान पर भरोसा करना ठीक वैसा ही है जैसे पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 16 बार माफ किया था। इतिहास जानता है कि उन माफियों ने अंत में पृथ्वीराज की आंखें छीन ली थीं और देश को गुलामी में धकेल दिया था। सरकार, हम आपसे मोहब्बत नहीं, मजबूती चाहते हैं। हमारी सेना का मनोबल तब टूटता है जब वह बहादुरी से लड़ती है, बलिदान देती है और फिर उसकी मेहनत को एक युद्धविराम की पट्टी से ढक दिया जाता है। सेना ने अपना काम किया, अब आपकी बारी थी लेकिन आप फिर से वही भूल दोहरा बैठे जिसे इतिहास ने पहले ही खारिज कर दिया था। आप जैसे मजबूत नेतृत्व से तो देश को ऐसी उम्मीद नहीं थी।

इस बार दुश्मन को ऐसा जवाब चाहिए था जो उसकी नस्लें याद रखें। शांति की बातें तब अच्छी लगती हैं जब सामने वाला इंसान हो। जो हर बार कायरता दिखाता है, उसकी भाषा समझदारी नहीं, सर्जिकल वार होती है। आपने तो देश को नहीं झुकने देंगे कि सौगंध खाई, तो यह युद्धविराम पाकिस्तान के आगे घुटने टेक देने जैसा ही है। सरकार, हम जानते हैं कि युद्ध कोई हल नहीं है, लेकिन बार-बार झुकना भी विकल्प नहीं है। सरकार, वक्त अब भी है। फैसला कीजिए – क्या आप इतिहास से सबक लेंगे या वही इतिहास दोहराएंगे? यदि देश का भरोसा टूटा तो अगला युद्ध पाकिस्तान से नहीं, आपकी नीतियों से होगा।

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