*सत्य और अहिंसा के प्रति समर्पण ही गांधीवाद है – विजय झा*
सत्य और अहिंसा का जिसने पूरी दुनिया को संदेश दिया। संदेश सिर्फ वाणी के माध्यम से नहीं, बल्कि अपने कार्यों के द्वारा, अनवरत अपने आचरण में भी उसका अनुसरण किया, कथनी और करनी के एकाकार होने के कारण ही एकमात्र गांधी ही एक ऐसा चरित्र हैं, जो पूरी दुनिया में पूजे जाते हैं। दुनिया के 88 मुल्कों में इनकी स्टैचू लगी हुई है, जहां लोग अपना शीश नवाते हैं और धरती पर कहीं भी हिंसा होती है तो लोग बार-बार गांधी जी को याद करते हैं उनके अहिंसा के संदेश को याद किया जाता है। धरती पर कहीं भी रंग-भेद, जाति – भेद, भाषा – भेद, ऊंच-नीच का भेदभाव या अन्य किसी भी प्रकार का भेदभाव होता है तो गांधी के सत्य और न्याय की बात होती है और गांधी को याद किया जाता है।
कुछ वर्ष पहले ही जब 25 मई 2020 को रंग भेद के आधार पर अमेरिका के मीनियापोलिस नामक शहर में एक गोरे पुलिस ऑफिसर डेरेक चौविन के द्वारा एक अफ़्रीकी मूल के जार्ज फ्लॉएड नामक काले व्यक्ति को जमीन पर पटक कर 9 मिनट तक उसके गर्दन को सड़क पर दबोचे रखा जिसके कारन जार्ज फ्लॉएड नामक व्यक्ति कि मौके पर ही मौत हो गई थी। अमेरिका सहित पूरी दुनिया में इस हत्या की आलोचना हुई, बल्कि अमेरिका के छोटे-छोटे जगह पर घटना के खिलाफ जो मोर्चा निकाला गया उसमें गांधी जी की तस्वीर के साथ रंगभेद के खिलाफ मोर्चा निकाला गया। यही है गांधी के विचारों की ताकत। सुदूर अमेरिका में रहने वाले लोग भी गांधी से प्रेरणा लेते हैं और गांधी की राह पर चलकर सत्य, सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से अपनी बात को कहते हैं।
दुनिया में कहीं भी कोई भी व्यक्ति/संस्था जो सत्य और न्याय की खातिर संघर्ष करते हैं, उन्हें गांधी से ही ताकत और प्रेरणा मिलती है, गांधी जी ने अपने जीवन काल में भी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उस वक्त दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद चरम पर था पूरी दुनिया में और कोई दूसरा उदाहरण नहीं है कि किसी देश में दूसरे मुल्क का नागरिक आकर और उस मुल्क के बुराइयों के खिलाफ आंदोलन करे और पूरी दुनिया में नजीर बन जाए। इसलिए नेशनल मंडेला भी कहा करते थे कि मुझे लड़ने की प्रेरणा गाँधी से मिलती है और इरोम शर्मिला भी जब वर्षों वर्षों तक सत्याग्रह करती हैं वह भी अपनी प्रेरणा का स्रोत गांधी जी को बताती है, किंतु दुर्भाग्यवश अपने ही देश के कुछ नौजवान आज गांधी पर सोशल मीडिया पर ब्यंग्य लिखते हैं और कहते हैं कि “चरखे से हमें आजादी नहीं मिली” यह वे युवा हैं, जिन्होंने गांधी जी को पढ़ा ही नहीं, गांधी जी को पढ़ा तो समझा ही नहीं, गांधी बनने के लिए कथनी और करनी में एकाकार होना पड़ता है, उन्हें यह पता नहीं है कि गाँधी ने चरखा के माध्यम से अंग्रेजों के सपनों को तोड़ने का काम किया। अंग्रेज भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में एक व्यापारी के रूप में तराजू लेकर आए और उसने चालाकी से “तराजू को कब तलवार” में तब्दील कर बदल दिया। जब तक पूरे देशवासी अंग्रेज के इस कारनामों को समझते तब तक पूरा देश गुलाम हो चुका था। कपड़े के व्यापार को अग्रेंज ने पूरे भारत में फैला दिया वे मैनचेस्टर के मीलों के बने कपड़ों को भारत के बाजार में उतारने के लिए हमारे कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग को धीरे धीरे नष्ट कर दिया, इससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैली और बेरोजगार नौजवान ईस्ट इंडिया कंपनी में भर्ती होने लगे। अग्रेज भारतीय रोजगार पर हमला करते और उन्हें बेरोजगार बनाते।
गांधी जी अंग्रेज के इस चाल को समझ गए, उन्होंने चरखा की बनी हुई सूत के कपड़े पहनने के लिए लोगो को प्रेरित किया जिससे हर घर में चरखा से सूत कटने लगी और इसके बाद उन्होंने सामूहिक चरखा चलाने का अभियान शुरू किया, इसमें महिलाएं अपने घरेलू काम निपटाकर एक जगह एकत्रित होकर चरखा काटती थी और उस क्रम मेँ भारत के स्वाधीनता से संबंधित लोकगीतों को सामूहिक गाती थी और सभी प्रेरणा पाते थे, इससे हर भारतीय के मन में भारतीयता के प्रति स्वाभिमान बढ़ने लगा और सभी लोग चरखे से कटे हुए वस्त्र पहनने लगे जिसके कारण मैनचेस्टर के मील के कपड़ों को लोगो ने नकारना शुरू कर दिया जिससे अंग्रेजों को नुकसान होता गया। पुरुष एवं महिलाएं चरखा से कटे हुए वस्त्र धारण करने लगे, जिससे उन्हें भारतीयता का स्वाभिमान होता था। इस छोटे से कार्य के माध्यम से सभी भारतीयों में आर्थिक गुलामी को तोड़ने की आदत पैदा हो गई जब तक अंग्रेज चरखे की इस ताकत को समझते तब तक चरखा पूरी गति से घूम चुका था और इस चरखे से उत्पादित कपड़े का भारतवाशी दीवाना हो चुका था। खादी पहनना भी एक क्रांतिकारी कदम हो गया था। चरखा कातना यानि क्रांति की मशाल को जलाये रखने के समान माना जाने लगा। जब गांधी को ऐसा आभाश हुआ कि चरखे ने पुरे भारत के लोगो को भारतीयता का पहचान करा दिया है तब उन्होंने 1942 में “अंग्रेजों भारत छोड़ो” का नारा दिया और अंग्रेज को मजबूर होकर भारत छोड़ने का फैसला लेना पड़ा। बड़ी संख्या में भारत के नौजवान आंदोलन में शामिल हुए और अपने देश कि मुक्ति के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। इसलिए हम कह सकते हैं की चरखे ने हमें अंग्रेजों के आर्थिक गुलामी से मुक्ति दिलाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चरखा के आधार पर ही पूरे देश में स्वदेशी का राग अलापा जाने लगा, विदेशी वस्त्रों की जगह जगह होली जलाई जाने लगी।
हर चौक चौराहे पर नौजवान मोर्चा निकालते, विदेशी वस्त्रों को अपने शरीर से उतारकर होली जलाते और चरखे की सूत से बने वस्त्रों को आजीवन धारण करने का संकल्प लेते। ये सिलसिला प्रतिदिन बढ़ता ही चला गया, मैनचेस्टर के कपड़ों के खरीददार कम होते चले गये, विदेशी वस्त्र धारण करने वालों को लोग हिकारत भरी नजरों से देखते, चरखे ने क्रांति की ज्वाला को और तीब्र कर दिया, नौजवान ने भी खादी को अपनाना शुरू कर दिया था, और चरखा देश का सम्मान और स्वाभिमान वन गया था। इसलिए हम कह सकते हैं हाँ ! साहब चरखे ने हमें गुलामी से मुक्ति दिलाई। बिजय कुमार झा
पूर्व अध्यक्ष, बियाडा
रानी बाजार, कतरास
9572499669
रिपोटर मिलन पाठक