*दैनिक प्राईम संदेश*
*राजू बैरागी जिला रायसेन*
बरेली।
दसलक्षण पर्युषण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म के अवसर पर शिक्षक जिनेंद्र जैन ने तप धर्म की महिमा बताते हुए कहा कि पर्यूषण पर्व के 10 धर्म हमें आत्म कल्याण के लिए मार्ग बताते हैं बस जरूरी है कि इन धर्मों की महिमा को अंगीकार कर हम कैसे अपने इस भाव को सफल बना सकते हैं।
उन्होंने कहा कि दशलक्षण महापर्व का सातवां लक्षण उत्तम तप धर्म है। इच्छाएं जीवन को कठिन बनाती हैं। इच्छाओं को जीतना ही तप है। जैन धर्म में तप की महिमा को अपरम्पार माना गया है। ज्ञान, दर्शन,चारित्र और तप के मार्ग का अनुगमन करते हुए जीव सुगति को प्राप्त करता है। निर्जरा का प्रमुख साधन है- तप।
तप कर्मों का नाश करता है, तप जग से सभी जीवों को उबारता है। जो 12 प्रकार के तपों को तपता है, वह शीघ्र ही परम पदवी को प्राप्त करते हैं
अतः शरीर को प्रमादी न बनने देने के लिये बहिरंग तप किये जाते हैं और मन की वृत्ति आत्म- मुख करने के लिये अन्तरंग तपों का विधान किया गया है। दोनों प्रकार के तप आत्म शुद्धि के अमोध साधन हैं।
पांच इन्द्रियों के विषयों के भोगने का तथा क्रोध आदि कषाय भावों के त्याग के साथ जो आठ पहर के लिये सब प्रकार के भोजन का त्याग किया जाता है उसको अनशन या उपवास कहते हैं। उपवास के लिये घर, व्यापार के कार्यों का त्याग, पाँचों इन्द्रियों के विषयों का त्याग तथा क्रोधादि कषाय- कलुषित भावों का त्याग होना आवश्यक है, यानी उस दिन अपने परिणाम शांत नियंत्रित रक्खें और
उपवास करने से शरीर से प्रमाद नहीं आता क्योंकि भोजन के बाद शरीर में सुस्ती आती है, सोने के लिये जी चाहता है, सामायिक, स्वाध्याय करते समय नींद के झोंके आते हैं, यदि भोजन न किया जावे तो यह बातें नहीं होने पाती, अतः उपवास करना आत्मशुद्धि करने के लिये बहुत कार्यकारी है।